गणेश चतुर्थी, ये कथा सुनने मात्र से मिलता है कई शुभ कर्मों के बराबर फल
गणेश चतुर्थी : गणेश जी के प्रकट होने के बारे में पुराणों में बहुत ही आलौकिक कथा कही गई है। आइए उस परम सुख दाई और दुखों को हरने वाली कथा के बारे में जानते हैं। भादौं माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी की महिमा
इस दिन प्रातः काल स्नान आदि करने के बाद गणेश जी की मूर्ति या चित्र के स्थापित करके पूजा अर्चना की जाती है। पुराणों के अनुसार कलियुग में गणेश जी को सबसे जल्दी प्रसंन होने वाले देव के रूप बताया गया है। जो भक्त पूरे मन से इस दिन भगवान श्री गणेशा की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन गणेश जी को मोदक का भोग लगाया जाता है। इस दिन ब्राम्हणों को पूरे मन किया गया दान लोक के साथ-साथ परलोक में भी शुभ फलों को देने वाला होता है।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
एक समय की बात है कि माता पावर्ती और देवाधिदेव महादेव कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। महादेव ने माता पार्वती से कहा कि हम स्नान करके आते हैं। भोलेनाथ ये कहकर स्नान करने निकल जाते हैं। भोलेनाथ के पीछे से माता पार्वती अपने शरीर के मैल से एक आकृति का निमार्ण करती हैं। उसके बाद उस आकृति में प्राण फूंक कर उसे गणेश का नाम देती हैं। साथ ही गणेश जी को अपने पुत्र का पद देती हैं।
माता पावर्ती की आज्ञा
इसके बाद माता पार्वती गणेश जी को मुदगर से अलंक्रत करती हैं। साथ ही बोलती हैं कि आज से हमेशा तुम मेरी सुरक्षा के लिए तैनात रहोेगे। अब मैं स्नान करने के लिए स्नानागार में जा रही हंू। तुम द्वार पर बैठ कर इस बात को देखो कि कोई भी व्यक्ति अंदर न आने पाए। माता की प्रथम आज्ञा पाते ही गणेश जी द्वार पर तैनात हो गए।
देवाधिदेव का आगमन
तभी भोलेनाथ आ जाते हैं, और अंदर जाने लगते हैं। बालक गणेश भोलेनाथ को अंदर जाने से बिल्कुल रोक देता है। जिसे देवाधिदेव ने अपने अपमान के रूप में लिया। क्रोधावश अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद देवाधिदेव अंदर चले गए।
पावर्ती जी ने भोलेनाथ को देखते ही भांप लिया कि वे कुपित हैं। जिसे देख माता पार्वती ने सोंचा कि भोजन में देरी की वजह से भोलेनाथ कुपित हैं। ये सोंच कर उन्हें जल्द से जल्द भोजन की व्यवस्था की और दो थालियों में भोजन परोस दिया। दूसरी थाली को देख शिवशंकर ने पूछा ये दूूसरी थाली किस लिए है। माता ने उत्तर दिया कि दूसरी थाली मेरे पुत्र के लिए है जो बाहर द्वार पर बैठा है। ये सुनकर भोलेनाथ ने बोला मैने तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है।
शोकग्रस्त माता पावर्ती
ये सुनते ही पार्वती जी शोकाकुल होकर रोने लगीं। भोलेनाथ ने ये देखकर तुरंत अपने गणों को बुलाया और कहा अभी जाओ और जो भी प्राणी सबसे पहले मिले जिसका जन्म आज हुआ हो उसका सिर लेआवो। आज्ञा पाते ही गण खोज में निकल जाते हैं। सबसे पहले उन्हें एक हथिनी मिलती है, जिसने कुछ समय पहले एक बच्चे का जन्म दिया था। उसका मस्तक लेकर गण तुरंत शिव जी के पास ले आते हैं।
गजानन अवतरण
भोलेनाथ हांथी का मस्तक गणेश जी पर लगा देते हैं। पुनः प्राणों को प्राप्त कर गणेश जी अपने पिता की आज्ञा न मानने पर अपने पिता से क्षमा याचना करते हैं। जिससे प्रसंन होकर भोलेनाथ ने गणेश जी के क्षमा कर दिया और बोले हे गणेश तुम सभी लोकों में पूज्यनीय होगे। तुम्हें लोग आदि काल तक विघ्नहरता के रूप में पूजेंगे। तुम प्रत्येक मंगलकार्य में प्रथम पूूजा के अधिकारी बनोगे।
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